यहां एक प्रसिद्ध कविता है जो कवि कुमार विश्वास ने पिता के विषय में लिखी है: पिता पर कविता कुमार विश्वास
पिता पर कविता कुमार विश्वास
"पिता"
कभी थम के नहीं चलते, कभी रुकते नहीं पिता,
दुनिया की राहों में रुक कर खुद को नहीं पिता।
दूर से देखो तो लगता है कोई बेमन से चलता है,
पास से देखो तो हर कदम पर थम के चलता है।
कभी खुद को भूलकर हमीं पर नज़र रखते हैं,
आदर्शों के फूलों को हम तक पहुँचाते हैं पिता।
दुनिया कहे या न कहे, उनकी आँखों में जो होता है,
उसी एक ख्वाब को संजोते हैं हम पिता।
माना कि सर्दी हो या गर्मी, वो हमेशा ही मुस्कुराते हैं,
लेकिन अंदर से उनकी मेहनत की चुप-सी आहें होती हैं पिता।
कभी सपने अपने, कभी ख्वाब हमारे होते हैं,
जो हम नहीं कर पाते, वो वो कर जाते हैं पिता।
आत्मा से शुद्ध, दिल से ममता में गहरा,
हर दुःख को सहकर हमें वह रास्ते दिखाते हैं पिता।
यह कविता पिता की अनकही पीड़ा, त्याग, और संजीवनी को चित्रित करती है। कुमार विश्वास ने हमेशा ही अपने काव्य के माध्यम से पिता के महत्व और उनके योगदान को उच्चारित किया है।